19-10-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"हर ब्राह्मण चैतन्य तारा मण्डल का श्रृंगार"

ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अव्यक्त बापदादा ज्ञान सितारों के प्रति बोले-

‘‘आज ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा अपने तारामण्डल को देखने आये हैं। सितारों के बीच ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा दोनों ही साथ में आये हैं। वैसे साकार सृष्टि में सूर्य,चन्द्रमा और साथ-साथ में सितारे इकट्ठे नहीं होते हैं। लेकिन चैतन्य सितारे, सूर्य और चाँद के साथ हैं। यह सितारों का अलौकिक संगठन है। तो आज बापदादा भिन्न-भिन्न सितारों को देख रहे हैं। हर सितारे में आपनी-अपनी विशेषता है। छोटे-छोटे सितारे भी इस तारा मण्डल को बहुत अच्छा शोभनीक बना रहे हैं। बड़े तो बड़े हैं ही लेकिन छोटों की चमक से संग- ठन की शोभा बढ़ रहीं है। बापदादा यही बात देख-देख हर्षित हो रहे हैं कि हरेक सितारा कितना आवश्यक है। छोटे से छोटा सितारा भी अति आवश्यक है। महत्वपूर्ण कार्य करने वाला है, तो आज बापदादा हरेक के महत्व को देख रहे थे। जैसे हद के परि- वार मे माँ-बाप हर बच्चे के गुणों की, कर्त्तव्यों की, चाल-चलन की बातें करते हैं वैसे बेहद के माँ-बाप, ज्ञान सूर्य और चन्द्रमा बेहद के परिवार वा सर्व सितारों के विशेषताओं की बातें कर रहे थे। ब्रह्मा बाप वा चन्द्रमा आज चारों ओर विश्व के कोने-कोने में चमकते हुए अपने सितारों को देख-देख खुशी में विशेष झूम रहे थे। ज्ञान सूर्य बाप को हर सितारे की आवश्यकता और विशेषता सुनाते हुए इतना हर्षित हो रहे थे कि बात मत पूछो। उस समय का चित्र बुद्धियोग की कैमरा से खीच सकते हो। साकार में जिन्होने अनुभव किया वह तो अच्छी तरह से जान सकते हैं। चेहरा सामने आ गया ना? क्या दिखाई दे रहा है? इतना हर्षित हो रहे हैं जो नयनों में मोती चमक रहे हैं। आज जैसे जौहरी हर रत्न की महिमा कर रहे थे। आप समझते हो कि आप सबकी क्या महिमा की होगी? अपने महानता की महिमा जानते हो?

सभी की विशेष एक बात की विशेषता वा महानता बहुत स्पष्ट है, जो कोई भी महारथी हो, वा प्यादा हो, छोटा सितारा हो वा बड़ा सितारा हो, लेकिन बाप को जानने की विशेषता, बाप का बनने की विशेषता, यह तो सब में है ना! बाप को बड़े-बड़े शास्त्र की अथार्टी, धर्म के अथार्टी, विज्ञान के अथार्टी, राज्य के अथार्टी, बड़े-बड़े विनाशी टाइटल्स के अथार्टीज, उन्होने नहीं जाना, लेकिन आप सबने जाना। वे अब तक आह्वान ही कर रहे हैं। शास्त्रवादी तो अभी हिसाब ही लगा रहे हैं। विज्ञानी अपनी इन्वेन्शन में इतने लगे हुए हैं जो बाप की बातें सुनने और समझने की फुर्सत नहीं है। अपने ही कार्य में मगन हैं। राज्य की अथार्टीज अपने राज्य की कुर्सा को सम्भालने में बिजी हैं। फुर्सत ही नहीं है। धर्मनेतायें अपने धर्म को सम्भालने में बिजी हैं कि कहाँ हमारा धर्म प्राय:लोप न हो जाए। इसी जमारे-जमारे में खूब बिजी है। लेकिन आप सब आह्वान के बदले मिलन मनाने वाले हो। यह विशेषता वा महानता सभी की है। ऐसे तो नही समझते हो कि जमारे में क्या विशेषता है, वा जमारे में तो कोई गुण नहीं है। यह तो भक्तों के बोल हैं कि जमारे में कोई गुण नहीं। गुणों के सागर बाप के बच्चे गनना अर्थात् गुणवान बनना। तो हरेक में किसी न किसी गुण की विशेषता है। और बाप उसी विशेषता को देखते हैं। बाप जानते हैं - जैसे राज्य-परिवार के हर व्यक्ति में इतनी सम्पन्नता जरूर होती है जो वह भिखारी नहीं हो सकता। ऐसे गुणों के सागर बाप के बच्चे कोई भी गुण की विशेषता के बिना बच्चा कहला नहीं सकते। तो सभी गुणवान हो, महान हो, विशेष आत्माये हो, चैतन्य तारामण्डल का श्रृगार हो। तो समझा आप सब कौन हो? निर्बल नहीं हो, बलवान हो। क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिवान हो। ऐसा रूहानी नशा सदा रहता है? रूहानियत में अभिमान नहीं होता है। स्वमान होता है। स्वमान अर्थात् स्व-आत्मा का मान। स्वमान और अभिमान दोनों में अन्तर है। तो सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहो। अभिमान की सीट छोड़ दो। अभिमान की सीट ऊपर से बड़ी सजी-सजाई है। देखने में आरामपसन्द, दिलपसन्द है लेकिन अन्दर काँटो की सीट है। यह अभिमान की सीट ऐसे ही समझो जैसे कहावत है - खाओ तो भी पछताओ और न खाओ तो भी पछताओ। एक दो को देख सोचते हैं कि हम भी टेस्ट कर लें। फलाने-फलाने ने अनुभव किया, हम भी क्यों नहीं करें। तो छोड़ भी नहीं सकते और जब बैठते हैं तो काँटे तो लगने ही हैं। तो ऐसे बाहर से दिखावटी, धोखा देने वाली अभिमान की सीट पर कभी भी बैठने का प्रयत्न नहीं करो। स्वमान की सीट पर सदा सुखी, सदा श्रेष्ठ, सदा सर्व प्राप्ति-स्वरूप का अनुभव करो। अपनी विशेषता बाप को जानने और मिलन मनाने की, इसी को स्मृति में रख सदा हर्षित रहो। जैसे सुनाया कि चन्द्रमा सितारों को देख हर्षित हो रहे थे, ऐसे फालो फादर।

(दादी जी को)

आपने भी सबकी विशेषता देखी ना! चक्कर में क्या देखा? छोटों की भी विशेषता, बड़े की भी विशेषता देखी ना! तो विशेषता वर्णन करने में, सुनने में कितना सब हर्षित होतें हैं। सब हर्षित होकर सुन रहे थे ना! (दादी जी ने अम्बाला और फिरोजाबाद मेले मा समाचार क्लास में सुनाया थी) ऐसे ही सदा सभी विशेषता का ही वर्णन करें तो क्या हो जायेगा? सदा जैसे विशेष कार्य में खुशी के बाजे बजते हैं ऐसे ब्राह्मण परिवार में चारों ओर सदा खुशी के ही साज बजते रहेंगे वा बाजे बजते रहेंगे। शार्ट और स्वीट सफर रहा। खुशियों की खान ले सबको खुशियों से मालामाल करके आई। हर स्थान की हिम्मत, उल्लास, एक दो से श्रेष्ठ है। बाप भी बच्चों की हिम्मत और उल्लास पर हर बच्चे की महिमा के गुणों के पुष्प बरसातें हैं। अच्छा- तो समझा क्या बनना है? क्या समझना है अपने को और कहाँ बैठना है? दोनों ही बातें सुनी ना! अच्छा।

ऐसे सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहने वाले, सदा अपने को विशेष आत्मा समझ विशेषता द्वारा औरों को भी विशेष आत्मा बनाने वाले, चन्द्रमा और ज्ञान सूर्य को सदा फालो करने वाले, ऐसे वफादार, फरमावरदार,सपूत बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ - हरेक अपनी श्रेष्ठ तकदीर को जानते हो ना? कितनी श्रेष्ठ तकदीर श्रेष्ठ कर्मों द्वारा बना रहे हो? जितने श्रेष्ठ कर्म उतनी तकदीर की लकीर लम्बी और स्पष्ट। जैसे हाथों द्वारा तकदीर देखते हैं तो क्या देखते हैं? लकीर लम्बी है, बीच-बीच में कट तो नहीं है। ऐसे यहाँ भी ऐसा ही है। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म वाले हैं तो तकदीर की लकीर भी लम्बी और सदा के लिए स्पष्ट और श्रेष्ठ है। अगर कभी-कभी श्रेष्ठ,कभी साधारण तो लकीर में भी बीच-बीच में कट होता रहेगा। अविनाशी नहीं होगा। कभी रूकेंगे, कभी आगे चलेंगे। इसीलिए सदा श्रेष्ठ कर्मधारी। बाप ने तकदीर बनाने का साधन दे ही दिया है - श्रेष्ठ कर्म। कितना सहज है तकदीर बनाना। श्रेष्ठ कर्म करो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। श्रेष्ठ कर्म का आधार है - श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहना अर्थात् श्रेष्ठ कर्म होना। ऐसे तकदीर वान हो ना? तकदीरवान तो सभी हैं लेकिन श्रेष्ठ है या साधारण - इसमें नम्बर है। तो सदा के तकदीर की लकीर खींच ली है या छोटी-सी खींच ली है? लम्बी है ना, अविनाशी है ना! बीच-बीच में खत्म होने वाली नहीं, सदा चलने वाली। ऐसे तकदीरवान! अब की भी तकदीरवान और अनेक जन्मों के भी तकदीरवान।

2. सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर बाप के साथ स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं, ऐसा समझकर चलते हो? हम आत्माओं को इतना श्रेष्ठ भाग्य मिला है, यह आक्यूपेशन सदा याद रहता है? जैसे लौकिक आक्यूपेशन वाली आत्मा के साथ भी कार्य करने वाले को कितना ऊंचा समझते हैं! लेकिन आपका पार्ट, आपका कार्य स्वयं बाप के साथ है। तो कितना श्रेष्ठ पार्ट हो गया! ऐसे समझते हो? पहले तो सिर्फ पुकारते थे कि थोड़ी घड़ी के लिए दर्शन मिल जाए। यही इच्छा रखते थे ना? अधिकारी बनने की इच्छा वा संकल्प तो सोच भी नहीं सकते थे, असम्भव समझते थे। लेकिन अभी जो असम्भव बात थी वह सम्भव और साकार हो गई। तो यह स्मृति रहती है? सदा रहती है वा कभी-कभी। अगर कभी-कभी रहती है तो प्राप्ति क्या करेंगे? कभी-कभी राज्य मिलेगा। कभी राजा बनेंगे, कभी प्रजा बनेंगे। जो सदा के राजयोगी हैं वही सदा के राजे हैं। अधिकार तो अविनाशी और सदाकाल का है। जितना समय बाप ने गैरन्टी दी है, आधाकल्प उसमें सदाकाल राज्य पद की प्राप्ति कर सकते हो। लेकिन राजयोगी नहीं तो राज्य भी नहीं। जब चांस सदा का है तो थोड़े समय का क्यों लेते। अच्छा''